कुछ छोड़ कर जाती है !
हर बार जब वो आती है
तो कुछ छोड़ कर जाती है।।
पलंग के नीचे मिली इक कान की बाली,
खिलौने बने सिक्कों की इक डिब्बी खाली ।
सोफे के किनारे पड़ा इक रंगीन स्कार्फ़,
और मेरी डायरी पे कुछ आधे लिखे हर्फ़ ।।
छत पे सकुचाई छुपी एक लाल रंग की गुड़िया
सपनों में बतियाते हुए वह जादू की पुड़िया ।
कार में बायीं खिड़की पे उसकी निश्चित सीट,
नयी निकाली चादर पे उसके रंगो की छींट ।।
मिट्टी के खिलौनों में उसका जान डाल देना
किचन में खड़े हो मेरे संग रोटी बेलना।
सुबह सुबह उठाने पर गुस्से में आँखें मलना
गेट पे खड़ी गाय को अंगूर देने को मचलना ।।
ऐसी अनगिनत यादें हर कोने में फैली हैं
संजो के रखने में एक बड़ी सी थैली है
इन्ही छूटी यादों में हम खुशियाँ कमाते हैं
ज़रा ज़रा जोड़ के पूरा बचपन बनाते हैं ।।
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