वो लड़का जिससे मैं ब्याह करके आई थी
नहीं मिलता है।
ढूंढती हूँ तो भी,
और नहीं तो भी,
वो लड़का जिससे मैं ब्याह कर आई थी
घिरा रहता है पैसे कमाने के चक्करों में।
बच्चों की फीस या उनके रोज़ाना की टक्करों में ।
मसरूफ सा कोई मिलता तो ज़रूर है
पर नहीं मिलता वो लड़का जिससे ब्याह कर आई थी
जो बातों बातों में दुनिया जीतने के किस्से सुनाता था,
आज कल हर दिन बस ऑफिस से थक हार जाता है।
याद है मुझे वो आत्म विश्वासी हठी
पर नहीं मिलता वो लड़का जिसे से मैं ब्याह करके आई थी
घिसी हुई जीन्स पहन के भी जो आत्म-विश्वास से मुस्कुराता था
अब हज़ारो के सूट में भी निरंतर घबराता है ।
याद है मुझे वह बेपरवाह
पर नहीं मिलती मुझे वो लड़का जिसे से मैं ब्याह करके आई थी
दोनों हाथ छोड़कर साइकिल चलने की शर्तें जिसने नित्य लगायी थी
अब बच्चों को झूले पे हाथ छोड़ खेलते देख उसी की जान पे बन आई थी ।
याद है मुझे वह अरमानों से बड़ा हुआ
पर नहीं मिलता मुझे वो लड़का जिसे से मैं ब्याह करके आई थी
कॉलेज में अनगिनत लेक्चर बंक करते हुए जिसने कभी न सोचा था
अब इतवार को ओवरटाइम करके छुट्टी संजोता था ।
Below is link for inspiration for the above poem. The original poem which was titled नहीं मिलती है वो लड़की has been written by Akshat.
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